संत श्री सगताराम जी मालवीय लोहार शिक्षा समिति मारवाड जंक्शन पाली

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About संत श्री सगताराम जी मालवीय लोहार शिक्षा समिति मारवाड जंक्शन पाली in Marwar Fuel Centre, Marwar Junction

परमार्थ को समर्पित था संत श्री सगतारामॠजी महाराज का जीवन
मरूधरा की पावन धरती पर अनेक ऋषि, मुनि, संत-महात्मा अवतरित हुए है जिन्होनें अपनी तप साधान, सत्संग कार्यक्रमों एवं प्रवचनों के माध्यम से ज्ञानामृत का प्रसाद बांटकर जन मानस में अध्यात्म में नव जागरण किया। जीवन में धर्म की महत्ता प्रतिपादित कर लोगों में धर्म, अध्यात्म की सरिता प्रवाहित की। इस भवसागर में अनेकों जीव जन्म लेते है, मर जाते है परन्तु धन्य है वे महापुरूष, जो उच्च आदर्शो एवं सत्कर्मो के बल पर मानव जीवन को सफल बनाने हेतु समर्पित होकर अमर हो जाते है। क्षेत्र परिक्षेत्र व समूचे देश में श्रद्धा व आस्था के केन्द्र बन जाते है उनमें संत श्री सगतारामजी महाराज का नाम भी उल्लेखनीय है। श्री सगतारामजी महाराज का जन्म आज से लगभग १९० वर्ष पूर्व पाली जिले के सोजत तहसील के मामावास गांव में श्री देववंशीय मालवीय लोहार (भाटोतरा) परिवार में हुआ था। आपके पिताश्री आशारामजी व मातुश्री श्रीमती तुलसी बाई थे। गृहस्थ आश्रम में रहकर पैतृक कर्म करते रहे व लोगों को भी भक्ति मार्ग से जोडऩे का प्रयास किया है। जिससे की जीवों को उद्धार हो सके। एक बार संत के लकड़ी का कार्य करते समय एक कीड़े की मृत्यु हो जाती है। इससे आहत होकर उन्होनें ब अंहिसा का संकल्प लेकर अपने पुश्तेनी कार्य (लकड़ी का कार्य) भी त्याग दिया। लेकिन परिवार के भरण-पोषण निमित्त चक्की टांचने का कार्य करते रहे। आप बाल्यकाल से ही श्री कृष्ण भगवान से प्रेरणा लेकर गोपालक बने, तथा गोसेवक के रूप में भी सुविख्यात हुए। गौभक्त होने के के कारण अनेक संत महात्माओं का सान्निध्य उन्हें मिला। उन्होनें एक चमत्कारिक संत सोमपूरीजी महाराज की गुरू धारणा की। तत्पश्चात अपने जीवन को भक्ति साधना में लवलीन कर दिया। ये शादीशुदा थे, लेकिन भक्ति के आगे गृहस्थी में मन उचाट रहता था। हांलाकि उनके ससुरजी ने उनकों उनके ससुराल "गादाणा" (मारवाड़ तहसील का गांव) में घर जंवाई इत्यादि बनाने का प्रलोभन दिया। उसके बावजूद उनमें वैरागय भाव इतला प्रबल था कि गृहस्थ एवं सांसारिक जीवन रास नही आ रहा था। कांठा मारवाड़ क्षेत्रिय गादाणा गांव में लोक संत अलखजी महाराज के ओरण में विशाल वटवृक्ष के ऊपर एकांतवाशी बनकर भगवत भक्ति में तत्पर रहते थे। वे कृषक परिवार से भी सम्बन्धित थे उनके खेत में कई बार दूसरी गायें चरने के लिए छोड़ दी जाती थी। खड़ी फसल चर जाती थी इसके बावजूद वे स्वयं गायों से विनती करते कि माताओं पेट भर गया हो तो अब तुम चली जाओं अन्यथा बच्चे आकर मारपीट कर तुम्हें बाहर निकाल देगें। ऐसा सुनकर गायें स्वयं वहां से चली जाती । गायों के साथ इनके ऐसे संवाद से क्षेत्रिय लोग आश्चर्यचकित थे। अनुठी गौभक्ति एवं वटवृक्ष पर तप साधना की जीवनचर्या से क्षेत्रिय जनजीवन के ज्योर्तिधर बन गए। जैसे-जैसे लोगों को विश्वास होता गया तो लोगों ने उन्हें मान सम्मान दिया। इसके बाद एक सच्चे संत की तरह चंहुओर ज्ञान का उजियारा फैलाया। उनके लिए किसी संत ने कहा है कि
"भक्ति बीज पलटे नही, जो जुग जाये अनंत।
ऊंच नीच घर अवतरें, रहे संत रो संत।।"
संत श्री सगताराजी महाराज ने अपनी वाणी में सहज, सरलता का भाव दर्शाते हुए जीवों को आत्मदर्शन करने के लिए प्ररित किया। उनके अमृत उपदेश थे किईश्वर को बाहर खोजने के बजाय मनुष्य अपने आत्मा में खोजें। तो ईश्वर का सहज साक्षात्कार सभंव हो जाएगा। संत ने अपना संपूर्ण जीवन परमार्थ को समर्पित कर दिया। वे एक ऐसे चमत्कारी संत थे जिनके बारे में क्षेत्र भर में अनेकों चमत्कारीक घटनाएं जनमानस में कही सुनी जाती है। उनके चमत्कारीक जीवन से अभिभूत होकर अमर स्वतंत्रता सैनानी आऊवा के तत्कालीन ठाकुर खुशालसिंह ने उन्हें गादाणा औरण में कई एकड़ जमीन भेंट की, लेकिन संत ने कहा कि "मै इतनी जमीन से क्या करू, मुझे तो जीवत समाधि लेनी है। इतनी जमीन दे दो तो बहुत है। " संत द्वारा जीवित समाधि ले लेने के पश्चात संत द्वारा जनहितार्थ किए गए कार्यो से अभिभूत होकर उनके उद्देश्यों, विचारों एवं उनके मानव एवं प्राणी मात्र के कल्याण एवं उनकी सेवा भाव के मूल मंत्र को लेकर श्रद्धालुऔं द्वारा श्री सगतारामजी महाराज की स्मृति मेंविभिन्न समितियों अन्य गतिविधियों के माध्यम से सपनों को साकार करने में जूटे हुए है। श्री अलखजी महाराज ओरण-गादाणा तथा रिसाणिया गांव में संतश्री सगतारामजी महाराज की जीवित समाधि स्थल है। समाधि स्थल पर आने वाले भक्तो की हर मनोकामनाए पूर्ण हाती है। प्रतिवर्ष माघ वद चतुर्थी को गादाणा, रिसाणिया तथा आंगदोष गांव में सत्संग का कार्यक्रम होता है। जहां पर श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में दर्शन कर खुशहाली व अमन चैन की कामना की जाती है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है। आज संतश्री के दिव्यधाम पर हजारों लागों की आस्था का मेला लगता है। लोग अपनी पीड़ाओं को लेकर रोते-रोते आते है और हंसते-हंसते जाते है। ऐसी महानï् विभूति के चरणों में कोटि-कोटि वन्दन। भारतवर्ष ऐसे सिद्ध संतों का सदैव गौरव गान करता रहेगा।

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