Bhaiyyu Maharaj

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About Bhaiyyu Maharaj in suryoday ashram indore, Indore

सदगुरु श्री भैय्युजी महाराज : एक कर्मशील संत
युवा राष्ट्र सन्त सद्गुरु श्री भय्यूजी महाराज जिनका एकमात्र उद्देश्य, अगणित निर्धन और दलित लोगों के मुख पर प्रसन्नता लाने का और उन्हें निराशा, अभाव तथा सामाजिक असमानता के दलदल से निकालकर, समाज की मुख्यधारा के साथ चलने हेतु सक्षम करने का है | आपकी गरिमा एवं पहचान एक आध्यात्मिक नेता, समाज सुधारक और प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित है । आप एक प्रबुद्ध सन्त हैं, जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य, मानवता की सेवा के साथ अथक तथा निःस्वार्थ सेवा द्वारा सशक्त राष्ट्र निर्माण को बनाया है | आपके अनुसार जनसामान्य को योग्य आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना आवश्यक है, जिससे वे प्रसन्नता तथा आनन्द के वास्तविक स्रोत को पा सकें !

सद्गुरु श्री के अनुसार ज्ञान, ध्यान, भक्ति और योग के दार्शनिक सिद्धान्तों के संयोजन से, व्यक्ति आत्म-जागृति तथा आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति प्राप्त कर सकता है | सद्गुरु श्री भय्यूजी महाराज की विचारधारा है कि राष्ट्रके समग्र विकास हेतु इसके नागरिकों का आध्यात्मिक, नैतिक, मानसिक, भौतिक और शारीरिक (स्वास्थ्य) विकास आवश्यक है ।

दूरदृष्टा सद्गुरु श्री की दृष्टि अत्यधिक क्रान्तिकारी है | सद्गुरु श्री आधुनिक प्रौद्योगिकी (तकनीक) एवं विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म को समान महत्त्व देते हैं । आपका कथन है कि हम विभिन्न रोगों और विकृतियों से समाज को जब तक मुक्त नहीं करते तब तक केवल धर्म के सम्बन्ध में चर्चा करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता । आपकी सभी गतिविधियों और परियोजनाओं के मूल में मानव के कौशल, शिक्षा और पर्यावरण के संवर्धन के माध्यम से, राष्ट्र के विकास की अवधारणा है, सद्गुरु श्री ने इसी उद्देश्य के प्रति स्वयं को समर्पित किया है ।

आपका ‘मिशन’ (अभियान) मानव मात्र की अन्तर्मुखता अर्थात् आन्तरिक एकान्त को जागृत करने का है, ताकि वह समाज के प्रति अपने योगदान को देने हेतु प्रेरित हो सके |


सन्त का कोई भौतिक परिचय नहीं होता | उनका व्यक्तित्व, उनका कृतित्व ही उनका परिचय होता है | अपने जीवन काल में सद्गुरु श्री भय्यूजी महाराज ने जो कार्य किए और वर्तमान में वे जिन कार्यों में संलग्न हैं, वे सेवाकार्य आने वाली पीढ़ियों का अनेक शताब्दियों तक मार्गदर्शन करते रहेंगे और वस्तुतः यही कार्य सद्गुरु श्री भय्यूजी महाराज का परिचय हैं |

युवावस्था से ही गुरुदेव ने अध्यात्म का प्रतिनिधित्व किया है और जनसाधारण को इसके महत्त्व के बारे में भली-भांति समझाने के अथक प्रयास किये हैं | यह गुरुदेव के द्वारा किए गए कार्यों व प्रयासों का ही परिणाम है कि उनके किये गए कार्यों के द्वितीय होने का कोई स्थान नहीं है | यह सब कुछ अदभुत एवं अद्वितीय है | उनका हर कार्य धर्म की कसौटी पर खरा एवं अध्यात्म के धरातल पर सुदृढ़ है | धर्म व अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए ही उन्होंने सभी सामाजिक कार्य किये और कभी भी अधर्म और अनीति का साथ नहीं दिया | आज वे एक सक्षम नेतृत्वकर्ता के रूप में दिखाई देते है और उनका जीवन विशिष्ट विचारों व ज्ञान के प्रकाश से आलोकित होता हुआ दिखाई देता है |

श्री गुरुदेव एक संत होने के साथ ही एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव प्रेमी भी है | गुरुदेव ने ईश्वर का आवाहन करते हुए कहीं कहा हैं –

“कैसा युग आया है, हर कोई भगवान बन गया है |
जो विचार पुराने हो गए थे, फिर नए हो गए हैं |
न बदला जमाना, न बदला इन्सान, धर्म के नाम पर ये इन्सान हैवान कैसे हो गए ?
जाते थे जिस तीर्थ में शांति पाने के लिए, आज वह बाजार में कैसे बदल गए ?
क्यों मिलता है तू सदा कबीर की झोपड़ी में, न कोई बड़े मठ में ?
फिर भी आज का इन्सान समझने को तैयार नहीं |
बहुत बेचा है हमने तुझे अलग-अलग नामों से, फिर भी तू हमारा लोभ तोड़ने को तैयार नहीं |
अब तो तरस गई गरीब भक्तों की व्याकुल आँखे तेरे दरस पाने को,
अब तो आ जाये कोई इन्सान रुपी कृष्ण या बुद्ध बनकर |
आज का इन्सान देव बनने की होड़ में, इन्सान बनने को तैयार नहीं |
आ बनकर इन्सान किसी झोपड़ी में, इस संस्कृति को फिर कबीर और तुकाराम के सिवा पर्याय नहीं |

सदगुरु श्री भैय्युजी महाराज का यह काव्यमय वक्तव्य उनकी विचारधारा और इस समाज में फैली अनैतिक गतिविधियाँ व मूल्यों की पतनशीलता के प्रति उनके ह्रदय की पीड़ा को अभिव्यक्त करता है | गुरुदेव ने अपने जीवन में ऐसे आदर्श व सिद्धांतों को स्थान दिया है जो पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्त्रोत है | गुरुदेव का विश्वास है कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्य भूमि है | यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यहीं सन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यही आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च्य आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है | उनके कथन – “भारतीय संस्कृति इसलिए महान है, क्योंकि इसी संस्कृति में वह संस्कार रचे बसे से है, जो विश्व शांति, बन्धुत्त्व, प्रेम एवं न्याय देते है |

सदगुरु श्री भैय्युजी महाराज का उद्देश्य एक ऐसी पीढ़ी निर्माण करना है जो अपने हित के साथ इस राष्ट्र के हित में भी अहम भूमिका अदा कर सके | गुरुदेव आडम्बरों एवं रूढ़ियों के सदा विरोधी रहे है | उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केंद्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया है | इनका धर्म अटपटा, लिजलिजा और वायवीय नहीं है | गुरुदेव ने सदैव इस बात पर जोर दिया है कि कही भी प्रसाद चढ़ाने या पूजा-पाठ करने की जगह भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों की सेवा करना वास्तविक धर्म है | यही कारण है कि गुरुदेव ने इन जनकल्याण कार्यों के क्रियान्वयन हेतु श्री सदगुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट की नींव रखी |

परम पूज्य गुरुदेव इस बात से आश्स्त है, कि धरती की गोद में यही ऐसा कोई देश है, जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशे की है, तो वह भारत ही है |यह गुरुदेव का अपने देश की धरोहर के लिए दंभ या बडबोलापन नहीं है | यह गुरुदेव की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरत और मूल्यगत सोच है और गुरुदेव के द्वारा किये गए प्रयास इस तथ्य के परिचायक है |

युगदृष्टा परम पूज्य गुरुदेव
मानवता जीवंत रखने के लिए विचारों की आवश्यकता होती है | विचार दो तरह के होते हैं – एक प्रभावित करने वाले तथा दूसरे परिवर्तन कराने वाले | आज समाज को परिवर्तन कराने वाले विचारों की आवश्यकता है | परिवर्तन यूँ ही नहीं होता, परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए समूचे व्यक्तित्व की, समूचे समाज और समूचे राष्ट्र की मानसिकता आवश्यक है | पीढ़ियों से गुलामी में जकड़ी हमारी परम्परा स्वत्रंत अस्तित्व के लिये छटपटा रही है | ऐसे स्वतंत्र अस्तित्व का विचार देने वाला कोई युगदृष्टा हमारे सामने होता है तब अनायास हम उसके पीछे चल पड़ते है | सूर्योदय युगदृष्टा है परम पूज्य गुरुदेव, जिनके विचारों में वह शक्ति है, जो व्यक्ति को मानवता के समीप लाकर खड़ा करती है |

वे कहते है, “सृष्टि का प्रत्येक तत्व अस्थायी है | यदि स्थाई है तो वहहैं, व्यक्ति के विचार | विचार जब अध्यात्म के आधार पर होते हैं, तब वे युगों-युगों तक कालजयी होते हैं | वेदांत के अनुसार जीवन यापन करने की परंपरा, दर्शन हमारी संस्कृति में अपने आप झलकता है | यही वह संस्कृति जो नर से नारायण बनने तक की यात्रा का लक्ष्य हमारे सामने रखती है | प्रकृति से लेकर घर-परिवार तक और घर-परिवार से लेकर राष्ट्र के हितों को वह हमारे सामने रखती है |”

परम पूज्य गुरुदेव के इन्ही विचारों से सूर्योदय परिवार का प्रत्येक सदस्य मानवता धर्म को प्रमुखता देता है | जहाँ राष्ट्र युग की आवश्यकता अनुसार समाज में व्यक्ति में परिवर्तन होना चाहिए | परम पूज्य गुरुदेव दिन-रात निर्धन, निराश्रितों की सहायता के लिए प्रेरित करते है | मनुष्य, जीव और प्रकृति का चिंतन करने वाले गुरुदेव आध्यात्म की सरल व्याख्या करते है | वे कहते है, “अध्यात्म प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्निहित है | इस अध्यात्म को जान लेना ही सत्य है | व्यक्ति अपने भीतर के चैतंन्य अर्थात् सदगुणों को न देखते हुए बाहर शांति ढूढने का प्रयत्न करता है | वह स्वयं के सामर्थ पर विश्वास नहीं करता हैं, इसलिए असमंजस में रहता है, इसी कारण गुलाम बनकर जीता है | अपने स्वतंत्र अस्तित्व के निर्माण के लिए व्यक्ति को प्रयत्न शील रहना चाहिए |”


“आत्मचिंतन से आत्मनिर्माण की क्षमता का विस्तार करना चाहिए, आकर्षण के वलय में पड़ा इन्सान अपना हित तो चाहता है, परन्तु परिवार, समाज, और राष्ट्र के बारे में नहीं सोचता | व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि मनुष्य जन्म मिला है, तो इसे सार्थक कैसे किया जाए | वे कहते है, मनुष्य को अपना जीवन चन्दन के समान बनाना चाहिए | चन्दन घिसता जाता है, अपनी सुगंध छोड़ता जाता है, इसलिए वह भगवन विट्ठल और शंकर जी के मस्तक पर चढ़ता है | चंदन भौतिकता और अध्यात्म में समन्वय साधते हुए अमर हो जाता है | उस अमरता की ओर अपना पथ बढाना ही जीवन का अस्तित्व है |” अपने अस्तित्व के लिए हर कोई प्रयत्न शील होता रहता है, परन्तु अस्तित्व का निर्माण ऐसा करें, जिससे समाज और मानव जाति लाभान्वित हो | आदर्श संघर्षों से प्रकट होता है | जिसने समाज के लिए, मानव जाति के लिये और राष्ट्र के लिए कार्य किया हो, वही आदर्श व्यक्तित्व है | आदर्श व्यक्तित्व की प्रेरणा व्यक्ति को अपने माता-पिता से मिलती है | पिता परिवार में संघर्षों का प्रतीक है और माता संस्कारों का बीजारोपण करती है, तभी एक व्यक्ति वटवृक्ष की तरह अपनी छाव परिवार को देता है | उसके फलों अनुभवों से समाज लाभान्वित होता है | आज जीवन निर्वाह करने का तरीका बदल गया है | व्यक्ति जिस समाज से विचारों को उठाता है, सहायता लेता है, उसी को ठोकर मरता है | इसलिए आज नवीन पीढ़ीके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है, कि वह आदर्श किसको मानें ?


आदर्श के लिये हमें हमारी संस्कृति की ओर आना होगा, जहाँ जीव से ब्रम्हा तक की व्याख्या की गई है, जहाँ भौतिक धरातल पर सिद्धांत की बात कही है, जहाँ जीव के परम लक्ष्य तक पहुचने का मार्ग बताया गया है | ऐसी संस्कृति को आदर्श मानकर हमें जीवन के अस्तित्व का निर्माण करना चाहिए |

राष्ट्र एक ऐसी समूची भूमि है, जहाँ पर खड़े होकर व्यक्ति को स्वतंत्र नागरिकता का बोध हों, राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए राष्ट्र के प्रति प्रेम होना चाहिए | ऐसा प्रेम जो परिवार के सदस्यों के प्रति हमें होता है, ऐसा प्रेम जो अपने प्रिय व्यक्ति के लिए हमारे अन्दर होता है | परिवार के लिए हम जिस तरह कर्तव्य करते है, वैसे ही हम राष्ट्र हित के लिए अपने कर्तव्यों का ध्यान रखे |

गुरूजी यह भी कहते है, कि आर्थिक समृद्धि से परिवर्तन नहीं आता | श्रेष्ठ विचारों से, जो युग की आवश्यकता के अनुकूल हो | परिवर्तन को लाने के लिए शिक्षा, धर्म और स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना होगा, समाज के विकास की ओर ध्यान देना होगा | धर्म और अध्यात्म का सही-सरल अर्थ हमें समझाना होगा | अध्यात्म हमारी आत्मा है, और धर्म शारीर है | प्रत्येक शरीर को आत्मा की आवश्यकता है और आत्मा को शरीर की | इस शरीर रुपी धर्म से हम अपने सदगुणों का चिंतन कर समाज की धारा को जोड़ सकते है | पुरानी रूढ़ियों को हटाकर समाज को प्रखर चिंतन की धारा से जोड़कर राष्ट्र का उत्थान कर सकते है |” आज राष्ट्र में अनके समस्याएं है | एक समस्या का समाधान करेगें तो दूसरी समस्या सुरसा की तरह सामने आती है | इस सुरसा को हम विवेक और बुद्धि से मिटा सकते है | हमें अपने विचारों का विस्तार करना होगा | अपने प्रत्येक कार्यों को सिधांतों की अनुरूप करना होगा, तभी हम प्रत्येक लक्ष्य तक पहुच सकते है | २२-२२ घंटे निरंतर प्रवास यात्रा करने वाले गुरुदेव, निरंतर साधना में रहने वाले गुरुदेव, व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक का विचार करते है | आने वाले वर्षों की भयावह स्थिति से हमारी नवीन पीढ़ी सामना करे, उसके पहले हमें जागना होगा, जगाना होगा |

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