NGS Grocery

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sector-5,shop no.1,vaishali,ghaziabad,U.P, Ghaziabad, India - 201012

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About NGS Grocery in sector-5,shop no.1,vaishali,ghaziabad,U.P, Ghaziabad

25 अक्टूबर 2008 का मेरा ये लेख नसीम भाई की दुकान पर है...... मेरी दिवाली और मुसलमान इस बार "मोहल्लेदारी" की तो समझ में आया कि मुसलमान न होते तो मेरी दीवाली में थोड़ी मुश्किल जरूर होती । शुरुआत करते हैं दफ्तर से । मेरा दफ्तर मी़डिया कंपनी है और यहां दिवाली की रात को भी उतना ही काम होता है जितना बाकी दिनों में । इस बार दिवाली आई तो फिर से लोगों की एप्लीकेशन आनी शुरू हो गई । सब को दिवाली मनानी थी और सबको घर जाना था । और इन सबकी दिवाली मनानें में सहायक बने अनवर साहब । उन्होंने मोर्चा सम्हाला है और इस साल कई लोग दीवाली पर छुट्टी जा रहे हैं । ग्राफिक्स में ये काम बासित और समीर के हवाले हैं । रिपोर्टरों में ये जिम्मेदारी अहमद और मिस सायरा पर है । इन दोनों के अलावा और भी कई नाम हें जो मुझे पता नहीं हैं । इन दोनों जगहों विभागों में भी काफी लोग दिवाली मना रहे हैं । मुझे पता है कि रेलवे में, आकाशवाणी में, बाजारों में सभी जगह ये मोर्चा ( दिवाली की खुशियां बांटने का ) मुसलमान ही संभाले हैं । मेरे दोस्त जावेद जंगलात के महकमे में बडे अफसर हैं । जब पिछली दिवाली पर साथ में त्योहार बनाने का प्रोग्राम बना तो वो शामिल नहीं हो सके । उनको भी कुछ सीनियर और जूनियर अफसरों को दिवाली मनाने भेजना था । मुझे लगा कि आवादी के अनुपात में अगर मुसलमान नौकरियों में होते तो शायद कुछ और लोग दिवाली मजे में मना पाते । आंकड़ों में नहीं जाना चाहता वरना बहस बढेगी । ये तो दफ्तर का मामला धा । कल धनतेरस थी और मैं बाजार में खरीदारी करने निकला था । दिल्ली के नजदीक गाजियावाद के वैशाली में मेरा घर है । यहां ले देकर एक ही बड़ी मार्केट हैं सेक्टर चार मार्केट । जब मेरी पत्नी यहां मिट्टी के लक्षमी गणेश की तलाश कर रही थीं तो वो बड़ी मुश्किल से मिली । हर जगह रेजिन की बनी मूर्तियां थीं या फिर भट्टी में पकी मूर्तियां परंपरागत मिट्टी की खडिया से पोतकर रंगी गई मूर्तियां कहीं नहीं थीं । बाजार ने त्योहार बदल दिया था सब जगह फेक्ट्री में बना सामान मिल रहा था । लेकिन मेरी पत्नी को चाहिय़े थी सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां । वो मूर्तियां जिनकी पूजा हमने बचपने से हर दीपावली में की थी । आखिर एक मुसलमान ही काम आया । एक ही दुकान एसी थी जिस पर हमारे काम की मूर्तियां थी और वो थी एक मुसलमान की । अगर आपको पता हो तो इसलाम में मूर्ति बनाना और पूजना गुनाह है । लेकिन ये हिंदुस्तानी मुसलमान हैं जो गुनाह करते हैं लेकिन हमारी दिवाली मनवाते हैं । खैर उस मूर्ति वाली को मैं नहीं जानता लेकिन नसीम भाई की दुकान हमारे हर त्योहार की जान है । जब इस धनतेरस पर बाजार में सौ रुपये किलो चीनी के बने खिलोने बिक रहे थे तो मैंने पत्नी को कहा कि नसीम की दुकान पर पक्का सही दाम मिलेगा । वहां पहुंचे तो दाम था चालीस रुपये किलो । नसीम की दुकान पर अर्जुन भी है और वो नसीम के परिवार की तरह है उसका धर्म हिंदू है । नसीम ने खील बताशे के साथ बर्तन भी रखे थे । सबसे सस्ते बर्तन भी नसीम के पास ही मिले । मेरी बेटी ने कुछ पटाखे भी लिए और जैसा हमेशा होता है पूरा हक जताकर नसीम से दाम भी कम करवाए । नसीम से ही पूजा के पन्ने लिए गए और बाकी सामान भी । सुरेश गुप्ता जी ने सर्वधर्म समभाव की बात कही थी मैं अपना उदाहरण दे रहा हूं । ये ही हिंदुस्तान है और यहां की गंगा जमुना साध्वी प्रज्ञा और मौलाना बुखारी जैसे लोग तो प्रदूषण हैं ।
BY GIRJESH SINGH CUSTOMER

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