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About Shri Jirawala Parshwanath Jain Tirth in , Dantrai
इस तीर्थ की महिमा का शब्दों मे वर्णन करना सम्भव नही है । प्रभु प्रतिमा अति मनमोहक व चमत्कारी है । दर्शन मात्र से ही सारे कृष्ट दूर हो जाते है । यहाँ जीरावला पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर विक्रम सं. ३२६ मे कोडी नगर के सेठ श्री अमरासा ने बनाया था । अमरासा श्रावक को स्वप्न में श्री अधिष्ठायक देव ने जीरापल्ली शहर के बाहर भूगर्भ में गुफ़ा के नीचे स्थित पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को उसी पहाडी की तलहटी में स्थापित करने को कहा । ऐसा ही स्वप्न वहाँ विराजित जैनाचार्य श्री देवसूरिजी को भी आया था । आचार्य श्री व अमरासा सांकेतिक स्थान पर शोध करने लगे । पुण्य योग से वहीं पर पार्श्वनाथ स्वामीजी की प्रतिमा प्राप्त हुई । स्वप्न के अनुसार वही पर मन्दिर का निर्माण कर प्रभु प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. ३३१ में आचार्य श्री देवसूरिजी के सुहस्ते सम्पन्न हुई ।श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की महिमा का जैन शास्त्रों में जगह जगह पर अत्यन्त वर्णन है । अभी भी जहाँ कहीं भी प्रतिष्ठा आदि शुभ काम होते है तो प्रारंभ में “ऊँ श्री जीरावला पार्श्वनाथाय नमः” पवित्र मंत्राक्षर रुप इस तीर्थाधिराज का स्मरण किया जाता है । इस मन्दिर मे श्री पार्श्वनाथ भगवान के १०८ नाम की प्रतिमाएँ विभिन्न देरियों में स्थापित है । प्रायः हर आचार्य भगवन्त, साधु मुनिराजों ने यहाँ यात्रार्थ पदार्पण किया है । इस तीर्थ के नाम पर जीरापल्लीगछ बना है, जिसका नाम चौरासीगच्छों में आता है । अनेकों आचार्य भगवन्तों ने अपने स्तोत्रों आदि मे इस तीर्थ को महिमा मण्डित किया है ।
यहाँ पर जैनेतर भी खूब आते हैं व प्रभु को दादाजी कहकर पुकारते है । प्रतिवर्ष गेहूँ की फ़सल पाते ही सहकुटुम्ब यहाँ आते है व यहीं भोजन पका कर प्रभु चरणों में चढाकर खुद ग्रहण करते है ।
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Shri Jirawala Parshwanath Jain Tirth, Nonprofit Organization, Dantrai, India - 307514
जीरावला गाँव में जयराज पर्वत की ओट में ।